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27 Apr 2018

कर्नाटक चुनाव: हर पार्टी में आया राम गया राम की कहानी, जनता किसको वोट दे?


विट्टल कटाकडोना एक हफ्ते पहले बीजेपी के लिए रैलियों का आयोजन करने में व्यस्त थे. बीजापुर जिला बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर वो पूरे जिले में पार्टी के प्रभारी थे, जिसमें उनकी अपनी सीट भी शामिल थी. एक हफ्ते बाद वो एक बार फिर से चुनावी प्रचार में व्यस्त हैं. लेकिन इस बार वो अब बीजेपी के लिए नहीं बल्कि कांग्रेस के लिए प्रचार कर रहे हैं.

दरअसल बीजेपी ने विट्टल कटाकडोना को आखिरी समय में नागाथाना रिजर्व सीट से टिकट देने से मना कर दिया. फिर क्या था गुस्से में कटाकडोना ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया. अब वहां के दोस्त उनके दुश्मन बन गए हैं जबकि उनके विरोधी विट्टल कटाकडोना के साथ क़दम से क़दम मिला कर चल रहे हैं.

पास में ही गुलबर्गा जिले के पूर्व विधायक एमवाई पाटिल दो हफ्ते पहले तक बीजेपी के कट्टर समर्थक थे. एक महीने पहले वो चुनावी प्रचार में भी जुट गए थे. लेकिन बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. बीजेपी ने कांग्रेस के विधायक मलकायाह गुत्तेदार को अपना उम्मीदवार बना लिया. फिर क्या था पाटिल ने भी कांग्रेस का हाथ थाम लिया.

पूर्व विधायक बी प्रसन्ना कुमार कांग्रेस के लिए बेंगलुरु में पुलिकेशिनगरा विधानसभा सीट से एक बार फिर से टिकट के लिए उम्मीदें लगाए बैठे थे. लेकिन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जेडीएस के विधायक अखण्डंद श्रीनिवास मूर्ति को टिकट दे दिया. नतीजा कुमार ने पिछले हफ्ते उसी सीट से जेडीएस का टिकट ले लिया.

ऐसी एक दो नहीं कर्नाटक विधानसभा चुनाव में नेताओं के टिकट न मिलने पर पाला बदलने की कई घटनाएं सामने आ रही है. करीब 60 ऐसे उम्मीदवार हैं जिसने अपनी पार्टी से टिकट नहीं मिला तो दूसरे का हाथ थाम लिया. दोस्त दुश्मन बन गए हैं जबकि दुश्मनी दोस्ती में बदल गई है.

शायद कई सालों में पहली बार, कर्नाटक में इस तरह के राजनीतिक बदलाव देखे जा रहे हैं. अकेले सत्तारूढ़ कांग्रेस ने बीजेपी और जेडीएस के ऐसे 18 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. इनमें से कुछ उम्मीदवार महीनों पहले पार्टी में शामिल हुए जबकि कुछ ऐसे हैं जिसने एक दो दिन पहले पाला बदला है.

बीजेपी ने 20 ऐसे उम्मीदवारों को पार्टी में जगह दी है. कुछ लोग तो नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के बाद पार्टी में शामिल हुए हैं. पूर्व डिप्टी स्पीकर और अनुभवी कांग्रेस विधायक एनवाई गोपालकृष्ण जो पिछले हफ्ते तक 'कांग्रेस जिंदाबाद'  के नारे लगा रहे थे, अब बेल्लारी जिले के कुडलिगी से बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.

जेडीएस ने ऐसे 22 उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं. इनमें से कुछ उम्मीदवार तो नामांकन खत्म होने से एक दो दिन पहले जेडीएस में शामिल हुए थे. कांग्रेस ने आठ जेडीएस और पांच बीजेपी के उम्मीदवारों को चुना है. बीजेपी ने पांच जेडीएस और सात कांग्रेस के विधायकों को टिकट दिए हैं.

जेडीएस ने हमेशा कांग्रेस और बीजेपी से रिजेक्टेड उम्मीदवारों को मौके दिए हैं. इनमें 12 कांग्रेसी 10 बीजेपी के नेता शामिल हैं.

आखिरी मौके पर जिस तरह नेताओं ने पाले बदलते हैं मददाताओं का मूड भापना काफी मुश्किल हो गया है. यहां तक कि सबसे अनुभवी राजनीतिक विश्लेषकों को भी मतदाताओं को समझना मुश्किल हो गया है. एक अनुभवी राजनीतिक विश्लेषक आर भारताद्री ने कहा "अगर ऐसे आधे उम्मीदवार को भी जीत मिलती है तो भी विधानसभा की तस्वीर बदल जाएगी.''

ये चुनाव सभी तीन प्रमुख दलों के लिए करो या मरो की लड़ाई है. विचारधाराओं और नीतियों पर किसी भी पार्टी का ध्यान नहीं है वो हर हाल में जीतना चाहते हैं.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "जब तक वे जीतते हैं, आया राम, गया राम पूरी तरह से स्वीकार्य हैं. जिस तरह हर वोट की अहमियत है उसी तरह हर सीट भी मायने रखती है."

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