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17 Dec 2017

निर्भया के गुनहगारों की मां बोलीं- अगले जनम मोहे बेटा न दीजो!


निर्भया कांड के 5 साल बीत चुके हैं और जीवित 4 बालिग आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट मौत की सजा सुना चुका है. दक्षिणी दिल्ली के आरके पुरम सेक्टर-3 में स्थित स्लम बस्ती रविदास कैंप में रह रहे चारों दोषियों के परिवार वालों को हालांकि अब भी उम्मीद है कि वे बच जाएंगे.

चारों दोषियों में से एक मुकेश की मां रमाबाई को भले उम्मीद हो कि उनका बेटा बच जाएगा, लेकिन जब वह कहती हैं कि काश उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया होता, तो लगता है कि कहीं न कहीं उनके मन में अपने बेटे के कुकर्म का पछतावा है.

रमाबाई का बड़ा बेटा राम सिंह भी निर्भया कांड में आरोपी था और उसने तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत के दौरान खुदकुशी कर ली थी. बड़े बेटे राम सिंह के खुदकुशी करने के चलते उसकी मां को लगता है कि वह दोषी रहा होगा.

मुकेश की मां का शुरू में बस्ती वालों ने बहिष्कार कर दिया था. लेकिन इसी साल पति की मौत के बाद जब वह बेसहारा हो गई तो बस्ती वालों ने मिलकर रमाबाई को 1,000 रुपये प्रति माह गुजारे के लिए देना शुरू किया है. रमाबाई बस्ती में एक छोटे से टूटे-फूटे कमरे में रहती हैं.

वृद्धावस्था के चलते अब वह काम नहीं कर सकती और दिनभर अपने अंधेरे कमरे में एकाकीपन की जिंदगी जी रही हैं. रमाबाई की ही तरह अन्य दोषियों- विनय शर्मा और पवन गुप्ता- के परिवार वालों को भी उम्मीद है कि वे बच जाएंगे.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में रमाबाई के हवाले से कहा गया है कि दो महीने में तिहाड़ तक ऑटो का किराया 25 से 300 रुपया जुट जाता है, तब वह मुकेश से मिलने जा पाती हैं. हालांकि मुकेश से मुलाकात के दौरान दोनों के बीच कुछ बात नहीं होती और वे एक दूसरे को देखते रहते हैं और रोते रहते हैं. उन्होंने बताया कि जेल के कर्मचारी अब उन्हें मुकेश के लिए खाना तक नहीं ले जाने देते.

सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई, 2017 को चारों जीवित बालिग दोषियों की मौत की सजा को बरकरार रखा और अब फांसी की सजा से बचने के लिए उनके पास सिर्फ एक उम्मीद बची है, राष्ट्रपति की दया. मुकेश के वकील ने हाल ही में फांसी की सजा कायम रखने के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर की है.

शीर्ष कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. दो अन्य दोषियों ने भी पुनर्विचार याचिका दायर की है. इस जघन्य अपराध में सर्वाधिक दरिंदगी दिखाने वाले नाबालिग को बाल सुधार गृह में तीन साल गुजारने के बाद रिहाई मिल गई है और अब वह गुमनाम जिंदगी जी रहा है.

रमाबाई जिंदगी में बिल्कुल अकेली पड़ गई हैं और पछतावे के साथ कहती हैं कि काश उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया होता, तो वह इतनी मुसीबत में नहीं पड़तीं. गौरतलब है कि उसी बस्ती में रहने वाले दो अन्य दोषियों के परिवार वालों की देखभाल अब उनकी बेटियां ही कर रही हैं.

एक अन्य दोषी विनय का छोटा भाई राज 11वीं में पढ़ता है और अपने माता-पिता के लिए अक्सर खाना पकाता है. राज का कहना है कि खाना पकाने से मुश्किलों से दूर जाने में मदद मिलती है. राज के कहने पर हाल ही में उनके घर में रंग-रोगन कराया गया है, लेकिन इससे भी उनका परिवार उस सदमे से निकल नहीं सका है.

राज के लिए यह बात थोड़ी राहत देने वाली जरूर है कि स्कूल में उसके दोस्तों का मानना है कि राज अपने बड़े भाई विनय जैसा नहीं है. विनय की बहन मंजू का कहना है कि एक व्यक्ति की करनी का फल पूरा परिवार क्यों भुगते. परिवार वाले विनय को दोषी तो मानते हैं, लेकिन चाहते हैं कि वह बच जाए.

उसी गली में थोड़ा आगे एक अन्य दोषी पवन का परिवार रहता है. पवन के परिवार वाले मीडिया से नाराज हैं और उनका आरोप है कि मीडिया उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश करता है. पवन की बड़ी बहन अपने बूढ़े माता-पिता को दिलासा देती रहती हैं कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा.

शुरुआत में दोषियों के परिवार का बस्ती वालों ने बहिष्कार कर दिया था, लेकिन अब उन्हें बस्तीवालों ने अपना लिया है. उनका कहना है कि एक व्यक्ति के कुकर्मों की सजा पूरा परिवार क्यों भुगते.

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