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16 Oct 2017

आतंक के खिलाफ NSG का स्थापना दिवस बड़ा 'ऑपरेशन'

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राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड यानी एनएसडी आज अपना 33वां स्थापना दिवस मना रहा है. आज हम कह सकते हैं कि NSG कमांडो हमारेरियल हीरो हैं और ऐसा मानना और सोचना स्वाभाविक ही है. पिछले दो दशकों से चाहे आत्मघाती फिदायीन हमलों से लड़ने की बात हो या आतंकवादियों की किसी बड़ी कार्रवाई को नेस्तनाबूद करने की, ऐसे हर संकट के एकमात्र संकटमोचक एनएसजी के कमांडोज ही साबित हुए हैं. एनएसजी के कमांडोज हमारे देश में सुरक्षा के अंतिम पर्याय हैं.
एनएसजी कमांडोज की सबसे खास बात है त्वरित गति से इनकी कार्रवाई और हर हाल में टारगेट को फिनिश करना. अपने गठन के बाद से आज तक एनएसजी कमांडो दो दर्जन से ज्यादा खतरनाक ऑपरेशनों को अंजाम दे चुके हैं. किसी भी ऑपरेशन में वे आज तक असफल नहीं हुए. इनका एकमात्र लक्ष्य होता है, हर हाल में सफलता. एनएसजी का कोई भी ऑपरेशन इतनी तीव्र गति से अंजाम दिया जाता है कि दुश्मन को इस बारे में सोचने का कोई मौका ही नहीं मिलता.
कंमाडो ने किए डेमो ऑपरेशन
1.एनएसजी ने अपने स्थापना दिवस के मौके पर कई तरीके के एन्टी हाई जैकिंग ऑपरेशन के बारे में दिखाया. इसमें सबसे पहले NSG के ऑपरेशन में शामिल थीं कनॉट प्लेस का ला प्लाजा रेस्टोरेंट जिसको आतंकियों ने हाईजैक कर लिया NSG के कमांडो ने बड़ी ही तत्परता के साथ इस रेस्टोरेंट को आतंकियों से मुक्त कराया.
2. आतंकियो ने वृंदावन जा रही बस को हाइजैक कर लिया जिसको सफल ऑपरेशन के जरिये NSG के कमांडो ने दिखाया कि कैसे आतंकियो से बंधकों को मुक्त कराते हैं.
3. एनएसजी इस समय 15 VIP को सुरक्षा दे रही है. एनएसजी ने अपने ऑपरेशन में दिखाया कि हमला होने पर ब्लैक कैट कमांडो कैसे VIPs को बचाते हैं.
4. एन्टी हाई जैकिंग ऑपरेशन में जवानों के लिए रामबाड़ साबित हो रही है. डेमो में दिखाया गया कि अमेरिका से खरीदा मार्स एन्टी हाईजैककिंग व्हिकल क्या है और कैसे काम करता है.
5. NSG के पास एंटी हाईजैकिंग छोटी गाड़ी शेरपा भी मौजूद है. अभी NSG के पास इस तरह की शेरपा 10 से 12 की संख्या में हैं. बुलेट प्रूफ गाड़ी शेरपा किसी भी जगह घुस सकती है जहां पर आतंकियो के ख़िलाक ऑपरेशन चल रहा होता है.
6. NSG ने बेल्जियन मेलोनोइस किस्म के डॉग को अपने ऑपरेशन के बेड़े में शामिल किया है,  जो हर एक ऑपरेशन में ब्लैक कैट कमांडो के साथ साये की तरह शामिल रहते हैं.
कैसे बनते हैं NSG
एनएसजी के एक-एक कमांडो की ट्रेनिंग बहुत ही कठिन होती है. जिस ट्रेनिंग का सबसे बड़ा मकसद अधिक से अधिक योग्य लोगों का NSG में चयन होना होता है. इसके लिए सबसे पहले जिन रंगरूटों का कमांडोज के लिए चयन होता है, वह अपनी-अपनी सेनाओं के सर्वश्रेष्ठ सैनिक होते हैं. इसके बाद भी उनका चयन कई चरणों से गुजर कर होता है. अंत में ये सैनिक ट्रेनिंग के लिए मानेसर पहुंचते हैं तो यह देश के सबसे कीमती और जांबाज सैनिक होते हैं.
ट्रेनिंग सेंटर पहुंचने के बाद भी कोई सैनिक अंतिम रूप से कमांडो बन ही जाए यह जरूरी नहीं है. 90 दिन की कठोर ट्रेनिंग के पहले भी एक हफ्ते की ऐसी ट्रेनिंग होती है. इसमें 15-20 फीसदी सैनिक अंतिम दौड़ तक पहुंचने में सफल हो पाते हैं. आपको बता दें कि NSG में 53 प्रतिशत सेना से जबकि 47 प्रतिशत कमांडो चार पैरा मिलिटी फोर्सेज- सीआरपीएफ, आईटीबीपी, रैपिड एक्शन फोर्स और बीएसएफ से रखे जाते हैं. इन कमांडोज की अधिकतम कार्यसेवा पांच साल तक होती है. पांच साल भी सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत को ही रखा जाता है, शेष को तीन साल के बाद ही उनकी मूल सेनाओं में वापस भेज दिया जाता है.
कठिन प्रशिक्षण है ताकत
एनएसजी का गहन प्रशिक्षण ही इनकी सबसे बड़ी ताकत है. किसी साधारण सैनिक को अपनी बीस साल की समूची सर्विस में जितनी ट्रेनिंग से नहीं गुजरना पड़ता है, उससे कई गुना ज्यादा किसी राष्टीय सुरक्षा गार्ड के कमांडो को अपनी तीन साल की सर्विस के दौरान ही गुजरना पड़ता है. एनएसजी में भी दो हिस्से हैं. एक हिस्सा है (एसएजी) यानी स्पेशल एक्शन ग्रुप और दूसरा है (एसआरजी) यानी स्पेशल रेंजर्स ग्रुप. एनएसजी की जो एसएजी टीम होती हैं उनको उन तमाम खतरनाक मिशन पर भेजा जाता है, जिसमें मौके पर ही किसी कार्रवाई को अंजाम देना होता है. इस तरह की कार्रवाइयों के केन्द्र में आमतौर पर आतंकवादी वारदातें होती हैं. जबकि दूसरी तरफ एसआरजी का मिशन वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा करना रखा गया है. इस समय देश में करीब 15 अति महत्वपूर्ण लोग हैं, जिनकी सुरक्षा में एनएसजी के कमांडो लगाये गये हैं. एनएसजी में शामिल होने वाले निरीक्षक स्तर के अधिकारियों की अधिकतम उम्र 35 साल होती है जबकि आमतौर पर कार्रवाई करने वाले कमांडोज की उम्र इससे काफी कम होती है.

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